Sunday, December 28, 2008

ये हंगामा है क्यो बरपा...

लोग क्रिसमस की जश्न में डूबे है ...और यहां टी वी चैनलों में ख़ुद को देश का ख़बरीया बनने की होड़ छी़ड़ गई है। एक-एक कर टीवी चैनल जंग की चैतावनी देने में मशगूल है। कहते है युद्ध होने को है। सीमा पर पाकिस्तान ने सैना का जमावड़ा बड़ाया है। सीमा पर हलचल अचानक तेज़ हो गई है। तो अब ख़बरीया चैनलों ने भी कमर कस ली है। भला लाइव कवरेज का इससे बड़ीया मौका और कब मिलेगा। इनकी बाते ग़ौर फरमाएं तो अब अचानक ऐसा माहौल पनपने लगा है की बस युद्ध हुआ समझो। वक्त ने एक बार फिर दो देशों को युद्ध की दहलीज पर ला खड़ा किया है। जी नहीं वास्तव में तो ऐसा बिलकूल नहीं है। लेकिन खबरीया चैनलों ने तो युद्ध की सारी तैयारीयां कर ली है। भारत-पाक सैना का आकलन किया जा रहा है। किसी को कम तो किसी को ज़्यादा आका जा रहा है। मिसाइलों से मिसाइले और जहाज़ों से जहाज़ का हिसाब किया जा रहा है। हमारे पास ये है तुम्हारे पास क्या है। पुरानी जंगों का खाता खोला जा रहा है। कहा जा रहा है की... हैं तैयार हम। मुम्बई आतंकी घटना को अभी ज़्यादा दिन भी नहीं हुए है और एक बार फिर मीडीया अपनी सीमाओं को लांघता दिख रहा है। अफ़सोस होता है बार-बार हम सेल्फ गवॻनेन्स की बाते करते है और फिर खुद की ही बनाई सरहदों को लांघ जाते है। उत्तेजना और देश भक्ति में एक मोटी रेखा होती है। लेकिन अधिकार और कत्वय की रेखा बहूत ही पतली। जब हम स्वतंॼ्य की मांग करते है तो हमे ये नहीं भूलना चाहिये की हम उस माध्यम से जुड़े है जिसके कत्वॻयों की कोई कमी नहीं है। लोगों पर इसका सीधा असर पड़ता है। अभी लोगों को उस घटना से सभलने का मौका तो दिजीये । जो अभी फिर खड़े हूए हंै उन्हे चलने तो दें। इन पर प्रतिक्रिया करे तो कहते है जनता जानना चाहती है। पर एक एक्ज़िट पोल करा जनता से पूछ लें तो शायद इनका ये भ्रम दूर हो जाये। ख़बरों को ख़बरों तक ही रहने दें तो अच्छा है।

Thursday, December 25, 2008

.................... हैप्पी क्रिसमस टू यू ..........

इन दिनों क्रिसमस की काफ़ी धूम है। कई दिनों से क्रिसमस की तैयारीयां भी ज़ोर- शोर से की जा रही है और अब क्रिसमस की शुभ घड़ी भी आ गई है। वो लम्हां जब पूरा देश क्रिसमस के जश्न में सराबोर होगा। हर जगह लाल रंग में रंगा सेंटाक्लाॅस बच्चों को तोहफे बांटेगा। हर गली में बच्चे झिंगल गाने के साथ ही अपने प्यारे सेंटा को पुकार रहे है... पर न जाने क्यों अचानक एक ख़्याल मन में बड़ी तेजी से कौंधा की क्या ...सेंटा की मंजिल सिफॻ बड़े घरों की ओर ही होती है या फिर उसका कोई रास्ता चाहे हलका सा ही क्यों न हो पर गरीब बस्तीयों से भी होकर गुज़रता है। अमूमन उनका रास्ता उन गंदी बदबूदार गलीयों से होकर नहीं गुज़रता । शायद उन बच्चों के लिए सेंटा के मायने कुछ और ही है। उनके लिए तो उनके पिता ही हर रोज़ सेटा बनकर आते है। दो वक्त की रोटी नसीब हो जाये तो उसी में उनकी जश्न समझीये। ये संसार अपवादों से भरा हुआ है। इसलिये ये ज़रुरी नहीं की ये बात हर सेंटा पर खरी उतरती हो...क्योंकी ....आखिर ये त्यौहार ख़ुशीयां बाटने और मनाने का है। अच्छा हो की इन खुशीयों में हम उन्हे भी शुमार करे जिनको इनकी सबसे ज्यादा जरुरत है। ये त्यौहार प्रभु ईशु से दुआऐ मांगने का भी है । देश भर के गिरजाघरों में भी दुआऐ मांगी जा रही हैं। आइये हम भी दुआ करे की इस देश में अमन और सुकुन सदा क़ायम रहे और आपसी त्यौहारों को हम सब यू ही एक साथ मनाते रहे... ............. आप सभी को क्रिसमस की बधाईयां..............

Wednesday, December 17, 2008

ये क्रिकेट की जीत है

टीम इंडिया की ये जीत कई मायनों में अहम है। इसने जहां भारतीय टीम के जीत की भूख को जिंदा रखा है बल्कि ये भी जता दिया है की आस्ट्रेलिया को करारी शिकस्त देना कोई तुक्का नहीं था और न ही ये अपने-आपमें कोई चमत्कार था। जिस तरह से भारत ने मुशकिल लग रही जीत को महज़ औपचारिकता में बदल दिया उससे टीम इंडिया का नया चहरा सामने आया है । ये वो टीम इंडिया है जो हार को जीत में बदलना बखुबी जानती है। इसके अलावा इस मैच में सचिन की पारी उनके उन आलोचकों के लिए करारा जवाब है जो सचिन के सन्यास की मांग कर देते है। लेकिन इसके अलावा हमें इंग्लैंड टीम का धन्यवाद करना चाहीये की उन्होने क्रिकेट के माध्यम से ही सही पर हमे फिर से ग़म के साये से दूर ले जाने में हमारी मदद की और भारतीय टीम की जीत ने हमे खुशी का एक मौका दे दिया । इसलिये सही मायनो में ये जीत क्रिके‍‍ट की भी जीत है ।