Saturday, January 3, 2009

हम में अलगाव क्यों है

कल हमारे एक रिस्तेदार हमारे घर आये । उन्हे बड़े ही सम्मान के साथ बिैठाया गया...ठंड बहुत थी ऐसे में भला गमॻ चाय की चुस्की का लालच किसको न होता। इसलिए चाय पेश की गई और फिर शुरु हुआ चुस्कीयों के बीच बात चीत का सिलसिला... वो अपने ज़माने की बात कर रहे थे और हम अपने ज़माने को डिफंेड करते जा रहे थे। जी हां डिफें़ड... हमने सांइस टेक्नालाजी की बात की तो उन्होने सभ्यता और संस्कार की। बातों ही बातों में अचानक उन्होने अपने ज़माने का एक किस्सा छेड़ दिया। हिमालय के कुमाऊँ में जब बफॻ पड़ती थी तब लोग कई- कई दिनों तक दूसरों के घर ही रहा करते थे। घुटनों घुटनों तक लदी बफॻ आदमी को असहाय कर देती थी। गरीबी थी... लेकिन संस्कार इंसान पर उससे भी ज़्यादा हावी थे। दिल्ली में भी लोग एक कमरे में दस-दस आदमी अपने दिन गुजारा करते थे। और आज आप एक दिन भी टीके रहें तो आप उसी में अपना सम्मान समझीये। इस बीच उनके मुख से जो शब्द निकले शायद वो इस किस्से का ही नहीं बल्की उस पूरी बहस का सार थे जो प्राय हम लोगों के बीच अक्सर सुनने को मिलती है। ज़माने में लोगों में इतना अलगाव क्यों है। उन्होने कहा की उस समय गरीबी ये सबको एक कर रखा था। सबका स्तर लगभग एक सा था। सबके खचेॻ सीमित थे और सबकी कमाई भी। पर अब मध्यवगॻ जितनी तेज़ी से आगे बड़ा हमारे बीच खाई भी उतनी तेजी से बड़ती गई। बड़ा छोटा और अच्छे की नई परिभाषाएं गढ़ी गई। इसलिए परिवारों के बीच विघटन शुरु हुआ। ये प्रक्रिया जारी है। अन्त न जाने क्या होगा। इतना कहना था की हमने अपनी चचाॻ समेट ली और अपनी चचाॻ को समाप्त किया। क्या वाकई ये ही हमारे बीच अलगाव का कारण है या कुछ और भी है...